
जब देश में थी दिवाली…..वो खेल रहे थे होली, जब हम बैठे थे घरो में……वो झेल रहे थे गोली.
क्या लोग थे वो अभिमानी…है धन्य उनकी जवानी,
जो शहीद हुए है उनकी…ज़रा याद करो कुर्बानी, ए मेरे वतन के लोगो…तुम आँख में भर लो पानी.
लिख रहा हूं मैं अजांम जिसका कल आगाज आयेगा, मेरे लहू का हर एक कतरा इकंलाब लाऐगा.
मैं रहूँ या ना रहूँ पर ये वादा है तुमसे मेरा कि, मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आयेगा.
ज़माने भर में मिलते हैं आशिक कई, मगर वतन से खूबसूरत कोई सनम नहीं होता,
नोटों में भी लिपट कर, सोने में सिमटकर मरे हैं शासक कई, मगर तिरंगे से खूबसूरत कोई कफ़न नहीं होता..!!
इतनी सी बात हवाओं को बताये रखना, रौशनी होगी चिरागों को जलाये रखना.
लहू देकर की है जिसकी हिफाजत हमने, ऐसे तिरंगे को हमेशा दिल में बसाये रखना.
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं,
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं.
आजादी की कभी शाम नहीं होने देंगे, शहीदों की कुर्बानी बदनाम नहीं होने देंगे,
बची हो जो एक बूंद भी लहू की, तब तक भारत माता का आँचल नीलाम नहीं होने देंगे.
आन देश की शान देश की, देश की हम संतान हैं,
तीन रंगों से रंगा तिरंगा, अपनी ये पहचान हैं.