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शकील जमाली की कलम सेशकील जमाली की कलम से

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1. अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता,
वो देखो एक औरत आ रही है.


2. अगर हमारे ही दिल में ठिकाना चाहिए था,
तो फिर तुझे ज़रा पहले बताना चाहिए था.


3. अपने ख़ून से इतनी तो उम्मीदें हैं,
अपने बच्चे भीड़ से आगे निकलेंगे.


4. ग़म के पीछे मारे मारे फिरना क्या,
ये दौलत तो घर बैठे आ जाती है.


5. हर कोने से तेरी ख़ुशबू आएगी,
हर संदूक़ में तेरे कपड़े निकलेंगे.


6. हो गई है मिरी उजड़ी हुई दुनिया आबाद,
मैं उसे ढूँढ रहा हूँ ये बताने के लिए.


7. इक बीमार वसीयत करने वाला है,
रिश्ते नाते जीभ निकाले बैठे हैं.


8. इक बीमार वसिय्यत करने वाला है,
रिश्ते-नाते जीभ निकाले बैठे हैं.


9. झूट में शक की कम गुंजाइश हो सकती है,
सच को जब चाहो झुठलाया जा सकता है.


10. किन ज़मीनों पे उतारोगे इमदाद का क़हर,
कौन सा शहर उजाड़ोगे बसाने के लिए.


11. कोई स्कूल की घंटी बजा दे,
ये बच्चा मुस्कुराना चाहता है.


12. कुछ लोग हैं जो झेल रहे हैं मुसीबतें,
कुछ लोग हैं जो वक़्त से पहले बदल गए.


13. लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं,
इश्क़ में इतना ख़सारा है तो घर जाते हैं.


14. मैं ने हाथों से बुझाई है दहकती हुई आग,
अपने बच्चे के खिलौने को बचाने के लिए.

जो ज्यादा उछलते हैं, वे उतने ही दबाये जाते हैं

कट्टर आशिकों के लिए शायरियां

अब स्पर्म डोनेट करने के लिए कम्युनिस्ट होना जरुरी....


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