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बाल श्रम आज भी एक बड़ी मानवीय समस्या बना हुआ हैबाल श्रम आज भी एक बड़ी मानवीय समस्या बना हुआ है

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बाल श्रमिकों को लेकर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की तरफ से चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं.
जिनके मुताबिक नाबालिगों से रेप के 25 प्रतिशत मामलों में दोषी उनको काम देने वाला मालिक या फिर उनके साथ काम करने वाला कर्मचारी ही होता है. ये  आंकड़े  साल 2015  के हैं, जो इस ओर भी इशारा करते हैं कि हमारे यहां आज भी न केवल बाल मजदूरों की संख्या अधिक है, बल्कि कम उम्र के इन कामगारों के शोषण के हालात भी भयावह हैं.

ये आंकड़े इसलिए भी चिंतनीय है कि हाल ही में आए बाल मजदूरी से जुड़े नए विधेयक में 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए परिवार से जुड़े व्यवसाय में काम करने की छूट दी गई है. यह नियम संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के लिए है. ऐसे में जान-पहचान वाले लोगों के साथ कर रहे बच्चों के शोषण की आशंका बहुत अधिक है. आंकड़े बताते हैं कि साल भर में नाबालिगों के शारीरिक शोषण के कुल 8,800 मामले सामने आए.

इनमें से 2,227 मामले यानी 25.3 प्रतिशत में उनका मालिक या फिर साथ का कर्मचारी जिम्मेदार था. इसीलिए यह चिंता भी घेरती है कि यह मामूली छूट कहीं बच्चों के जीवन के लिए बड़ा दंश ना बन जाए. ये नए आंकड़े ऐसी आशंका को और बल देते हैं. भारत में जहां गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और बढ़ती आबादी जैसी समस्याएं जड़ें जमाए हैं, वहां बाल श्रम आज भी एक बड़ी मानवीय समस्या बना हुआ है.

हमारे यहां बच्चों की खरीद, शोषण और दुकानों, खदानों, फैक्टरियों, उद्योगों, ईट भट्ठों और घरेलू कामों में मजदूरी एवं शारीरिक र्दुव्‍यवहार की अनगिनत डरावनी कहानियां मौजूद हैं. लेकिन नियोक्ता और साथी कर्मचारियों द्वारा बच्चों के यौन शोषण के ये आंकड़े इस चिंता में और इजाफा करने वाले हैं. अफसोसजनक ही है कि देश में आज भी मासूम बच्चों से न केवल मशीनों की तरह काम लिया जाता है वरन उन्हें दुष्कर्म जैसे अमानवीय कृत्य का शिकार भी बनाया जाता है. गौरतलब है कि भारत का प्रत्येक चौथा बालक बालश्रम के चलते स्कूल नहीं जा पाता.

एनसीआरबी के इन ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2015 में बच्चों का शोषण करने वालों में सबसे ज्यादा बार पड़ोसी दोषी पाया गया. 3,149 यानी 35 प्रतिशत मामलों में पड़ोसी ने बच्चे पर बुरी नजर रखी. वहीं, 10 प्रतिशत केस ऐसे थे, जिसमें पीड़ित का घरवाला ही कोई घटना को अंजाम देने में शामिल पाया गया. 94.8 प्रतिशत केसों में पीड़ित का शोषण करने वाला परिचित निकला. निश्चित रूप से यह समझना कठिन नहीं कि गरीबी के हालातों को झेल रहे बाल मजदूरों के साथ उनके जान-पहचान वाले लोग कैसा व्यवहार करते होंगे?

हमारे यहां तो घरों से लेकर स्कूल तक बच्चों के साथ होने वाली यौनाचार की घटनाएं आम बात हैं. ऐसे में मजबूरी के बोझ तले दबे इन बाल कामगारों का सुरक्षित रह पाना तो वाकई मुश्किल लगता है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश  में 53.22 फीसद बच्चे यौन शोषण का शिकार हैं. इस अत्याचार को झेलने वाले बच्चों में केवल लड़कियां ही नहीं, लड़के भी शामिल हैं, जिसमें 5 से 12 साल की उम्र के बीच यौन शोषण का शिकार बनने वाले बच्चों की संख्या सर्वाधिक है.

अनुमान यह भी है कि भारत में दुनिया के किसी भी हिस्से के मुकाबले अधिक बाल मजदूर हैं. जो भयावह और असुरक्षित हालातों में काम कर  रहे हैं. घरेलू कामगार के तौर पर काम करने वाले बच्चों के साथ होने वाले र्दुव्‍यवहार को तो हमारे यहां कई बार शोषण ही नहीं माना जाता. ऐसे में ये आंकड़े न केवल सामाजिक व्यवस्था बल्कि मानवीय मूल्यों को भी शर्मिंदा करने वाले हैं. आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो भारत में 5 करोड़ से ज्यादा बाल श्रमिक हैं, जबकि गैर-सरकारी संगठनों का कहना है कि बाल श्रमिकों की संख्या इससे कहीं अधिक है.

इन्हीं चिंताओं को देखते हुए बाल श्रम से जुड़े नए विधेयक में संसद ने 14 साल से कम उम्र के बच्चों से श्रम कराने और 18 साल तक के किशोरों से खतरनाक क्षेत्रों में काम लेने पर रोक के प्रावधान वाले बालक श्रम प्रतिषेध और विनियमन संशोधन विधेयक, 2016 को  पारित किया है. हालांकि बच्चों के हितों के संरक्षण का मामला हमारे संविधान में निहित है. इसके बावजूद, बाल अधिकारों का   उल्लंघन सालों से जारी है. निसंदेह बाल श्रमिक बने  बच्चों के यौन शोषण  उनके  अधिकारों के हनन का सबसे विकृत रूप है. इस विषय में सख्ती से सोचा जाना आवश्यक है.


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