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गुलज़ार साहब की शायरियांगुलज़ार साहब की शायरियां

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1. आदतन तुम ने कर दिए वादे,
आदतन हम ने ए'तिबार किया.


2. आप के बा'द हर घड़ी हम ने,
आप के साथ ही गुज़ारी है.


3. अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार,
पीले पत्ते तलाश करती है.


4. भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आँखों में,
उजाला हो तो हम आँखें झपकते रहते हैं.


5. चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं,
दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें.


6. देर से गूँजते हैं सन्नाटे,
जैसे हम को पुकारता है कोई.


7. दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई,
जैसे एहसाँ उतारता है कोई.


8. हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते,
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते.


9. हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में,
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया.


10. जब भी ये दिल उदास होता है,
जाने कौन आस-पास होता है.


11. जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ,
उस ने सदियों की जुदाई दी है.


12. कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़,
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे.


13. ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में,
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में.


14. कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ,
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की.


15. रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले,
क़रार दे के तिरे दर से बे-क़रार चले.

नींद नहीं आई तो दादी ने ली क्लास

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हम ही तेरे हिज्र में जागा करते थे - मध्यम सक्सेना

 


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