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कवि दिवस पर अकबर इलाहाबादी को समर्पितकवि दिवस पर अकबर इलाहाबादी को समर्पित

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1. आई होगी किसी को हिज्र में मौत,
मुझ को तो नींद भी नहीं आती.


2. आह जो दिल से निकाली जाएगी,
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी.


3. आशिक़ी का हो बुरा उस ने बिगाड़े सारे काम,
हम तो ए.बी में रहे अग़्यार बी.ए हो गए.


4. अब तो है इश्क़-ए-बुताँ में ज़िंदगानी का मज़ा,
जब ख़ुदा का सामना होगा तो देखा जाएगा.


5. अगर मज़हब ख़लल-अंदाज़ है मुल्की मक़ासिद में,
तो शैख़ ओ बरहमन पिन्हाँ रहें दैर ओ मसाजिद में.


6. अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से,
लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से.


7. अक़्ल में जो घिर गया ला-इंतिहा क्यूँकर हुआ,
जो समा में आ गया फिर वो ख़ुदा क्यूँकर हुआ.


8. असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है 'अकबर',
इलाहाबाद से लंगड़ा चला लाहौर तक पहुँचा.


9. कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गया,
जब कोई तक़रीर की जलसे में लीडर बन गया.


10. कॉलेज से आ रही है सदा पास पास की,
ओहदों से आ रही है सदा दूर दूर की.


11. एक काफ़िर पर तबीअत आ गई,
पारसाई पर भी आफ़त आ गई.


12. इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं,
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है.


13. इस गुलिस्ताँ में बहुत कलियाँ मुझे तड़पा गईं,
क्यूँ लगी थीं शाख़ में क्यूँ बे-खिले मुरझा गईं.

नींद नहीं आई तो दादी ने ली क्लास

बशीर बद्र की रेखता शायरियां

ख्वाहिश मुझे जीने की ज़ियादा भी नहीं है - अनवर जलालपुरी


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